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मन क्या है

 मन आदमी को यह विश्वास नहीं होने देता है कि संसार की किसी भी वस्तु में सुख नहीं है , वह हमेशा यही कहेगा कि तुझे दुख है वह हमेशा सुख की खोज में तुम्हें भटकाएगा , वह कहेगा की रुक रुक पास यह मिल जाए तो तुम पक्का सुखी हो जाएगा फिर वह मिल जाने के बाद फिर से वही तृष्णा मन में उत्पन्न होती है। वह कहता है कि अच्छा अच्छा एक बार और रुक अबकी बार पक्का सुखी हो जाएगा। इसी प्रकार कृष्ण को तृप्त करने में पूरा जीवन निकल जाता है और वह हमेशा दुख में जीवन होता है मन (काल) यह यकीन नहीं होने देता है कि यह जीवन एक दुखालय है जिसमें सुख तो कहीं है ही नहीं । x

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