कुम्भ मेला अंधविश्वास का सैलाब
कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिकमें स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। २०१३ का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। २०१९ में प्रयाग में अर्धकुंभ मेले का आयोजन हुआ
खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है।
अब बात करते हैं हमारे शास्त्रों की तो पवित्र गीता में लिखा है कि कुम्भ स्नान गीता जी के विरुद्ध है।
गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में कहा गया है कि शास्त्र विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं होता
कुम्भ में नहाने से कितने जीवों की हत्या होती है और इसका कितना पाप लगता है मनुष्य को। इसलिए तत्वदर्शी संत का सत्संग सुनें जिससे पापों से बचा जा सके।
आप देखते हैं कि साधु लोग गांजा पीते हैं जो कि शास्त्रविरुद्ध है इसीलिए कबीर साहेब ने कहा है कि
अमल आहारी आत्मा कबहु न उतरे पार!
साधु खुद भांग पीते हैं। नशा करते हैं। तो ये कैसे कुंभ की भव्यता बढ़ाएंगे।
आप स्वयं पढ़े लिखे हैं आप खुद सही गलत का फैसला कर सकते हैं तो अंधविश्वास की बेड़ियों में न बंधकर शास्त्रानुसार चलें
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